नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा अवसर है, जब समाज के हर क्षेत्र में महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता है। इस मौके पर गुजरात जायंट्स की सलामी बल्लेबाज और पार्ट-टाइम ऑफ स्पिनर दयालन हेमलता ने लड़कियों और महिलाओं से पेशेवर रूप से खेलों में करियर बनाने का आग्रह किया।
हेमलता ने कहा, “खेलों में हिस्सा लेना जीवन बदलने वाला होता है। यह न केवल आत्मविश्वास बढ़ाता है, बल्कि निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करता है। खेल आपको आक्रामक, निडर और आत्मनिर्भर बनाता है।”
जहां ज्यादातर क्रिकेटर बचपन में ही अपने खेल करियर की नींव रख देते हैं, वहीं हेमलता ने 18 साल की उम्र में पेशेवर क्रिकेट खेलना शुरू किया। इससे पहले वह चेन्नई की गलियों में लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थीं।
उन्होंने बताया, “जब मैं लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी, तो वे हमेशा मुझसे कहते थे, ‘सावधान रहो, तुम यह नहीं कर सकती’। यह सुनकर मुझे और भी चिढ़ होती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि क्रिकेट सभी के लिए है।”
हेमलता की क्रिकेट यात्रा अचानक शुरू हुई। एक दोस्त ने उन्हें जिला चयन ट्रायल फॉर्म दिया और सुझाव दिया कि उन्हें इसे भरकर देखना चाहिए।
उन्होंने बताया, “जब मैं ट्रायल के लिए गई, तो मेरे घर में किसी को इसके बारे में पता नहीं था। केवल मेरा भाई मेरे साथ था। जब मेरा चयन हो गया, तब हमें माता-पिता को बताना पड़ा।”
उनके परिवार को यह स्वीकार करना कठिन था, क्योंकि उनकी बहन इंजीनियरिंग में टॉपर थी और परिवार को उम्मीद थी कि हेमलता भी उसी रास्ते पर चलेंगी।
उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता सोच रहे थे कि मैं कोई अच्छी डिग्री ले सकती थी। लेकिन मैंने बीए समाजशास्त्र (सोशियोलॉजी) में दाखिला लिया ताकि मैं क्रिकेट पर ज्यादा ध्यान दे सकूं। मैंने उन्हें कहा, ‘मैं दो-तीन साल कोशिश करूंगी, अगर यह नहीं हुआ तो कोई और डिग्री लेकर आईटी सेक्टर में जाऊंगी’।”
अपने कठिन परिश्रम और समर्पण से हेमलता ने तमिलनाडु, चैलेंजर ट्रॉफी और इंडिया ए टीम के लिए खेला। आखिरकार, 23 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया।
उन्होंने कहा, “जब मैंने भारत के लिए खेला, तो यह मेरे लिए सपने के सच होने जैसा था। मेरा एक ही लक्ष्य था – मुझे भारत के लिए खेलना है। मुझे नहीं पता था कि मैं पांच साल में यह हासिल कर लूंगी। यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।”
2015-16 में एक गंभीर दुर्घटना में हेमलता की कलाई की हड्डी टूट गई। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उन्हें एक प्लेट लगानी पड़ेगी, जिससे वे एक से दो साल तक नहीं खेल पाएंगी।
उन्होंने कहा, “अगर मैं प्लेट लगवाती, तो मुझे फिर से उसे निकलवाना पड़ता, जिससे मैं अपनी कलाई को पूरी तरह नहीं घुमा पाती। इसलिए मैंने आयुर्वेदिक इलाज का सहारा लिया।”
इस चोट के कारण वह मानसिक रूप से परेशान हो गईं। उनके माता-पिता ने सुझाव दिया कि वह क्रिकेट छोड़कर पढ़ाई या किसी अन्य करियर पर ध्यान दें।
हेमलता के लिए क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि जुनून था। पांच महीनों तक चोट से जूझने के बाद उन्होंने फिर से क्रिकेट खेलना शुरू किया।
उन्होंने कहा, “बल्लेबाजी मेरी लत थी। भले ही मैं आधी रात को उठूं, मैं शैडो प्रैक्टिस करने लगती थी। आखिरकार, मेरी मां ने कहा, ‘कोई तुम्हें नहीं रोकेगा, तुम बस खेलो।'”
हेमलता का मानना है कि “हर खिलाड़ी को चोटों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उससे उबरना ही असली सफलता होती है।”
आज वे भारतीय क्रिकेट की एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं और महिला क्रिकेट को एक नई दिशा देने में योगदान दे रही हैं। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी उन सभी लड़कियों के लिए प्रेरणा है, जो खेलों में करियर बनाना चाहती हैं।